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प्रादेषिक संगठन एवं विष्वशान्ति: एक समीक्षात्मक अध्ययन

Author Name : डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद मिश्र


आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के परिचालन तथा विष्व षान्ति एवं सुरक्षा स्थापित करने में संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे विष्व व्यापी संगठनों के साथ ही अनेकानेक प्रादेषिक संगठनों ने भी एक स्थायी स्थान ग्रहण कर लिया है। हम देखते हैं कि जहां एक ओर सम्प्रभुता रखने वाले अलग-अलग राष्ट्र हैं वहीं वे अलग रहते हुए भी वे एक दूसरे पर अधिक निर्भर भी हैं, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय सीमाओं को पार करके राष्ट्रोत्तर संबंधों की स्थापना करनी होती है। राष्ट्रों की इसी भावना का परिणाम ही अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं संगठनों की स्थापना को जन्म देता है। राष्ट्रों के कुछ हित एवं आवष्यकताएं अधिक व्यापक या अंतर्राष्ट्रीय होती है तो कुछ संकुचित अथवा प्रादेषिक। इन्हीं संकुचित एवं प्रादेषिक हितों के आधार पर प्रादेषिक संगठनों की स्थापना हुई। क्षेत्रीय सहयोग तथा पारस्परिक निर्भरता ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बजाय क्षेत्रीय स्तर पर राष्ट्रों को अपने हितों एवं उद्देष्यों के आधार पर एकता के सूत्र में बांधने का प्रयत्न किया। द्वितीय विष्व युद्ध के बाद इस दिषा में विषेष प्रगति हुई। पायर और परकिन्स ने तो इसे अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की एक रोचक घटना माना और कहा-‘‘प्रादेषिक संगठनों की ओर राष्ट्रों का रूझान आज के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की सबसे अधिक रोचक घटनाओं में से एक है।’’1