International Journal of All Research Education & Scientific Methods

An ISO Certified Peer-Reviewed Journal

ISSN: 2455-6211

Latest News

Visitor Counter
2289561089

भू-स्थानिक तकनीक...

You Are Here :
> > > >
भू-स्थानिक तकनीक...

भू-स्थानिक तकनीकों के आधार पर लोहारू नगर में भूमि उपयोग एवं भूमि आवरण परिवर्तनों का सार रूपी अध्ययन

Author Name : प्रियंका, डॉ. रश्मि शर्मा

सारांश

भूमि उपयोग से तात्पर्य मानव द्वारा धरातल के विविध रूपों में प्रयोग किए जाने वाले कार्यों से है जिसमें भूमि का व्यावहारिक उपयोग किसी निश्चित उद्देश्य या योजना से संबंद्ध होता है। इसके ठीक विपरीत भूमि आवरण से अभिप्राय यह है कि किसी क्षेत्र में कितना भाग वन, बंजर भूमि, कृषि, जलीय स्त्रोत, आवासीय भूमि इत्यादि के अंतर्गत आता है। नगरीय भूमि उपयोग का वृहत स्तर पर प्रथम भूमि उपयोग सर्वेक्षण ग्रेट ब्रिटेन में सन् 1930 ई. में डडले स्टाम्प महोदय द्वारा किया गया था। जैसे - जैसे नगर की विकास प्रक्रिया आगे बढती है, तथा नये मोड लेना आरंभ करती है, तो विस्तृत समतल भूमि की मांग बढती है तथा नए नए कार्यों के संचालन, उद्योग - निर्माण एवं आवासीय क्षेत्र हेतु भूमि की मांग बढना शुरू हो जाती है। अतः बढती हुई मांग की आपूर्ति हेतु कृषि के अंतर्गत भूमि को साफ करना पडता है और इस प्रकार भूमि कृषि उपयोग से गैर कृषि कार्यों में प्रयुक्त होने लगती है। इसी तरह नगर के भूमि उपयोग एवं भूमि आवरण के लक्षण प्रतीत होने लगते हैं। यहाँ भूमि उपयोग एवं भूमि आवरण परिवर्तनों के आकलन हेतु लोहारू शहर के अध्ययन को प्राथमिकता दी गयी है। लोहारू शहर अपनी ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध है। लोहारू कस्बा तहसील का मुख्यालय है तथा भिवानी से 60 किलोमीटर दूर स्थित है। यह कस्बा राजस्थान प्रान्त की सीमा पर रेत के टील्लों के बीच एकान्त में भिवानी-पिलानी मार्ग पर स्थित है। यह दिल्ली-पिलानी लाईन पर एक बड़ा जंक्शन है। यहां पर नवाब का पुराना प्रसिद्ध भवन है, जिसकी जनसंख्या 2001 की जनगणना के अनुसार 11421 है और 2011 की जनगणना के अनुसार 13937 है। जिसके परिणामस्वरूप भूमि उपयोग एवं भूमि आवरण में अनेक सकारात्मक एवं नकारात्मक परिवर्तन दृष्टिगोचर हुए हैं, जिनका अध्ययन प्रस्तुत शोध अध्ययन में किया गया है। 
संकेताक्षर:- भूमि उपयोग, भूमि आवरण, समतल भूमि, लोहारू शहर, नगरीय जनसंख्या।