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आधुनिक युग में योग की उपयोगिता
Author Name : कलावती आर्या
योग प्राचीन काल में हमारे देश के ऋनषयों, महर्षषयों मनीनषयों ने इश्वर प्रानि के ऄनेक साधनों की खोज की थी। ईन साधनों में योग-शास्त्र एक साधन है। यौनगक साधनाओं का ऄभ्यास करके मनुष्य सुख, अनन्द और मोक्ष की प्रानि कर सकता है । योगशास्त्र स्वयं में सम्पूणा शास्त्र है । आसे दकसी ऄन्य [ऄवलम्बन] सहायता की अवश्यकता नहीं है। जैसा दक तन्त्र मन्त्र अदद की साधनाओं में होती है। तन्त्र और मन्त्र से सम्बनन्धत साधनाओं में योग की ऄनेक दियाओं ( यथा - मुद्रा, असन, प्राणायाम और ध्यान अदद ) के ऄवलम्बन नबना नसनियााँ नमलना ऄसम्भव है । ऄत : योग नवज्ञान ही सवोपरर नवज्ञान है । योग शब्द का ऄथा:- योग शब्द संस्कृ त की युज धातु से बना है नजसका ऄथा समानध और नमलाना है । महर्षष पानणनी ने ' योग ' शब्द की व्युत्पनि'युज् संयमने' 'युनजर् योगे' और 'युज समाधौ,आन तीन धातुओ से करते है । 'युज् संयमने' 1 आनन्द्रयों परसंयमन करना या मन पर संयम करना है ही योग है'युनजर् योगे' 2आस के ऄनुसार ' योग ' शब्द का ऄनेक ऄथो में प्रयोग दकया गया है । जैसे - जोड़ना , नमलाना , मेल अदद । आसी अधार पर जीवात्मा और परमात्मा का नमलन योग कहलाता है । ‘युज समाधो’ 3ऄथाात् आसमें योग को समानध की ऄवस्था कहा गया है,ऄथाात् समानध' कहा गयाहै जो दक जीवात्मा और परमात्मा की समता होती है । महर्षष पतंजनल ने योग शब्द को समानध के ऄथा में प्रयुक्त दकया है ।