
शासकीय एवं अशासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अध्ययनरत विज्ञान विषय के छात्रों के नैतिक मूल्यों का तुलनात्मक अध्ययन
Author Name : अभय कुमार चौबे, डॉ. धीरज शिन्दे
प्रस्तावना
हरबर्ट के अनुसार -
नैतिक शिक्षा, शिक्षा से पृथक नहीं है जहॉं तक नैतिकता धर्म का अर्थ है इन दोनों का अस्तित्व एक दूसरे पर निर्भर है। इस बात को इस प्रकार कहा जा सकता है कि धर्म के बिना नैतिकता का और नैतिकता के बिना धर्म का अस्तित्व नहीं है।
हम आज के समय को देखते है तो ज्ञात पड़ता है कि बच्चों में नैतिक मूल्यों की गिरावट आ गई है। बच्चों में बड़ों के प्रति आदर का भाव कम होता जा रहा है। बच्चें स्वभाव से उदंड होते जा रहे है। उनमें नैतिक मूल्य एवं षिष्टाचार तथा संस्कार कहीं खोने लगें है। बड़े क्या कहते हैं उसे मानने की बजाय अपनी मनमर्जी कर रहे है। सुखद और सभ्य संस्कारों को बाल्यकाल में विकसित किया जा सकता है। बालक मन बड़ा ही कोमल एवं स्वच्छ होता है। इस अवस्था में जैसे जीवन के मूल्यों को अपनाया या सिखाया जाता है वहीं व्यक्तित्व के अंग बन जाते है। आधुनिक युग मेें नैतिक मूल्य क्या है ? हम भूलते जा रहे है। आधुनिक युग की चकाचौंध और एकल परिवार भी इसका कारण बन रहे है। आज की युवा पीढ़ी पष्चिमी सभ्यता की ओर आकर्षित हो रही है। युवा अपनी संस्कृति, संस्कारों, नैतिक मूल्यों और षिष्टाचार को भूल रहे है। आज बच्चों को नैतिक मूल्यों के बारे में पढ़ाना पड़ रहा हैं। आज हमें मानना पड़ेगा कि आधुनिकता के साथ बच्चों में षिष्टता और नैतिकता की कमी आ रही है। इसके लिये कुछ हद तक परिवार जिम्मेदार है। आज बच्चों को सभी प्रकार की सुविधाएं मिल रही है उतना ही उनका नैतिक पतन हो रहा है। बच्चे बाहर जाकर मैदान में खेलने की बजाय घर में कम्प्यूटर पर गेम खेलना पसंद करते है। हम स्वयं भी बच्चों को बाहर जाने से रोकते है, जो कि गलत बात है। बाहर जाकर बच्चों लोगों के साथ मेलजोल का भाव सीखता है। आज के बच्चे आगे बढ़ना तो सीख रहे हैं, लेकिन जीवन के जरूरी मूल्यों जैसे षिष्टता, नैतिकता एवं संस्कारों को भूलते जा रहे है। हमारे जीवन में षिष्टाचार एवं नैतिकता का होना अत्यन्त आवष्यक है। हमें अपने संस्कार, संस्कृति एवं नैतिकता को कभी नहीं भूलना चाहियें। संस्कारों से ही हमारी पहचान होती है। बच्चों को संस्कार एवं षिष्टाचार की षिक्षा अपने माता-पिता एवं परिवार से ही मिलती है। बच्चों में नैतिक मूल्यों, षिष्टाचार एवं संस्कारों की षिक्षा देकर उन्हें अच्छी संगत सिखायी जा सकती है।