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स्वातंत्र्योत्तर कथा-साहित्य में महिला कथाकारों की भूमिका
Author Name : बीना देवी, डाॅ॰ गोविन्द द्विवेदी
भूमिका
किसी भी घटना या स्थिति का असर साहित्य पर तुरंत परिलक्षित नहीं होता है। रचनाकार की रचना धर्मिता की आन्तरिक प्रक्रिया में पहले मानसिक धरातल पर उसका भाग किया जाता है तब ही उसकी अभिव्यक्ति होती है। राजनीतिक दृष्टि से हम भले ही एक रात में स्वतंत्र हो गए हों। लेकिन सामाजिक दृष्टि से एक ही दिन में कोई परिवर्तन नहीं आ सकता। स्वतंत्रता का साधारण लोगों पर यही प्रभाव पड़ा कि सभी मुक्ति के बोध की सुखद अनुभूति के नव आलोक में रह रहे थे। सभी के अन्दर परतंत्रता, पराधीनता से मुक्ति का आह्मलादकारी रूप तरंगित हो रहा था। फिर भी स्वतंत्र भारत के प्रारम्भिक वर्षों की स्थिति स्वतंत्रता पूर्व की स्थित से बिल्कुल भी भिन्न नहीं थी, फिर भी इसके उपरान्त जो सामाजिक स्थिति उत्पन्न हुई उसकी अभिव्यक्ति मोहभंग के रूप में ही हई थी। यथार्थ जगत में जैसी स्थिति सामने आई उसकी प्रतिक्रिया होनी स्वाभाविक थी। इसी काल समय में ही साहित्य के क्षेत्र में नव लेखन का आन्दोलन प्रस्तुत हुआ। जिसके अन्तर्गत समूची नवीन प्रवृत्ति और दृष्टिकोण को व्यक्त करने वाला साहित्य प्रकाश में आया। हिन्दी साहित्य में इसी रूप में नव लेखन आधुनिकता का एक रचनात्मक दृष्टिकोण लेकर प्रविष्ट एवं प्रतिष्ठित होता है। काव्य के नए उपकरणों को तो उसने जन्म दिया ही साथ ही साथ गद्य के क्षेत्र में भी उसने नवीन दिशाओं के द्वार खोले।1 स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जिस प्रकार देशवासियों में नई आशा, सोच और आकांक्षा जाग्रत हुई, उसी के अन्तर्गत उषा प्रियम्वदा कृष्णा सोबती, चन्द्र किरण सोनरेक्सा, रजनी पनिकर, कंचनलता सब्बरवाल, इन्दु बाली आदि लेखिकाएं कथा साहित्य के क्षेत्र में आगे आई। काव्य जगत में विद्यावती कोकिल, तारा पाण्डेय, शकुन्तला सिरोठिया, स्नेहलता स्नेह, कुसुम सिनहा, माधवी लता शुक्ल, शान्ति महरोत्रा आदि प्रमुख हैं।2 कथा-साहित्य के क्षेत्र में इस यम जो उल्लेखनीय वैचारिक धरातल पर स्वीकार करते हुए पुराने पंरम्परित कथ्य एवं शिल्प कौशल को बासी एवं आउट आॅफ डेटिड कहकर नए कथाकार उपस्थित हुए, जिन्होंने नूतन भावबोध को कथा का विषय बनाया। इसी पीढ़ी ने संगठित होकर गोष्ठियों, भाषणों, आयोजनों, लेखों आदि के द्वारा पुरानी पीढ़ी के लेखकों पर कीचड़ उछाला, उनके लेखन पर प्रश्न चिन्ह लगाए। इस प्रकार 1950 तक आते-आते नवलेखकों का यह सामुहिक प्रयास सफलतम होता है व उसको स्थायित्व, यश और लोकप्रियता सभी कुछ हासिल हो जाती है।3