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आधुनिक भारतीय समाज में बुनियादी शिक्षा की उपादेयता एवं निष्कर्ष

Author Name : बृजेश सिंह यादव

प्रस्तावना

आज भारतीय समाज में मुख्य रूप से शिक्षित लोगों में शारीरिक श्रम के प्रति हीनता की भावना पैदा होने लगी है। यह वर्तमान शिक्षा प्रणाली का एक बड़ा दोष है। भारत जैसे देश जहां पर मानव श्रम बहुत बड़ी संख्या में उपलब्ध है वहां श्रम की अवहेलना करना देश की आर्थिक उन्नति में बाधक है। महात्मा गांधी ने शिक्षा के क्षेत्र में इसी कमी को पहचाना और बुनियादी शिक्षा के क्षेत्र में श्रम की प्रतिष्ठा कर शिक्षा को उत्पादकता से जोड़ने का प्रयास किया। गांधी जी के अनुसारी एक व्यक्ति को दान देने की बजाय यह कहीं वेहतर होगा कि हम उसकी आजीविका कमाने में उसकी सहायता करें और उसको श्रम करने के लिए प्रोत्साहित करें। श्रम या मेहनत ही सब विकासों का आधार है। आधुनिक भारतीय समाज में वेरोजगारी की समस्या एक महान समस्या है। इस समस्या का समाधान गांधी जी की आधारभूत या बेसिक शिक्षा के द्वारा किया जा सकता है जिसमें हस्त उद्योग द्वारा शिक्षण करने पर बल दिया गया है। हस्त उद्योगों के अंतर्गत गांधी जी ने कपास, रेशम की बुनाई से लेकर सफाई, पिंजाई, रंगाई, मांड लगाना, ताना लगाना, बुनाई, कसीदा काढ़ना, सिलाई आदि तमाम क्रियायें कागज बनाना, कागज काटना, जिल्द साजी, आलमारीफर्नीचर वगैरह तैयार करना, खिलौने बनाना, गुड़ बनाना इत्यादि उद्योगों को शामिल किया जिन्हें आसानी से सीखा जा सकता है और जिनको करने के लिए बड़ी पूंजी की भी जरूरत नहीं होती । गांधी जी ने बेरोजगारी मुख्य रूप से शिक्षित बेरोजगारी के विषय में चिंता व्यक्त करते हुए नई शिक्षा (बुनियादी शिक्षा) के द्वारा इस समस्या के हल करने की बात कही हैं। गांधी जी के शब्दों में मेरा यह विश्वास है कि हमारे कालेजों में जो इतनी भारी तथाकथित शिक्षा दी जाती है यह सब बिल्कुल व्यर्थ है और उसका परिणाम शिक्षित वर्गों की बेकारी के रूप में हमारे सामने आया है। आज युनिवर्सिटी में शिक्षा पाये हुए हमारे नौजवान या तो सरकारी नौकरियों के पीछे मारे-मारे फिरते है या उसमें असफल होकर लोगों को लूट-पाट के लिए भड़काकर अपनी कुढ़न मिटाते है। लोगों से भीख मांगने या उनके टुकड़ों के मोहताज बनने में भी वे शर्म महसूस नहीं करते। उनकी दुर्दशा की भी कोई हद है । आज युनिवर्सिटियों को चाहिए कि ये देश की आजादी के लिए जीने और मरने वाले जनता के सेवक तैयार करे । इसलिए मेरी राय है कि तालीमी संघ के शिक्षकों की मदद से यूनिवर्सिटी शिक्षा को नई तालीम ( बुनियादी या बेसिक शिक्षा) के साथ जोड़कर उसकी लाइन में आना चाहिये ।