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आदिवासी स्त्री: म...

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आदिवासी स्त्री: म...

आदिवासी स्त्री: मिथक एवं यथार्थ

Author Name : डॉ. देशराज वर्मा

आधुनिक विकास के मॉड़ल का ताना-बाना अंग्रेजी षिक्षा से बुना रचा गया है। तकनीकी कार्यकुषलता तथा धारा प्रवाह अंग्रेजी भाषा का प्रयोग रोजगार की आधारभूत योग्यताएँ बन गई हैं। इस कसौटी पर ग्रामीण युवा, दलित, आदिवासी स्त्री आदि खरे नहीं उतर पाते हैं। इनमें से भी आदिवासी स्त्री कई स्तरों पर शोषण का षिकार होती है। परिणामतः दरिद्रता, अषिक्षा, कुपोषण, ऋणग्रस्तता, विस्थापन, पलायन तथा भूमिहीनता आदि के अभिषाप इन्हें अनजाने-अनचाहे में ही मिल जाते हैं। रोजगार की आवष्यकता और बाजार के सपने इन्हें धकेल और खींच की प्रक्रिया मे पीसते हैं। आदिवासी क्षेत्रों में मातृभाषा की उपेक्षा का दंष भी प्रकारान्तर से आदिवासी बालिकाएँ अधिक झेलती हैं। वैसे भी आदिवासियों में षिक्षा के प्रति अरूचि, संकोच तथा डर का भाव रहा है। राजस्थान में भील, सहरिया, गरासिया आदि के संदर्भ में इसे भली-भाँति समझा जा सकता है। संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद उनमें साक्षरता का प्रतिषत नाममात्र है।