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वैशेषिक दर्शन मे...

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वैशेषिक दर्शन मे...

वैशेषिक दर्शन में शिक्षा का स्वरूप तथा वर्तमान समय में इसकी उपयोगिता

Author Name : डाॅ प्रवीण कुमार

वैशेषिक दर्शन और पाणिनीय व्याकरण को सभी शास्त्रों का उपकारक माना गया है। श्काणादं पाणिनीयं च सर्वशास्त्रोपकारम्श् इस दर्शन का नाम वैशेषिक काणाद तथा औलूक्य दर्शन भी है। काणाद का अर्थ कण को भक्षण करके जीवन यापन करने वाला होता है। श्कणानत्तीति कणादःश् ;व्योमवती पृ0 20द्ध ष्कणान् परमाणून् अत्तिष् अर्थात सिद्वान्त के रूप में जो स्वीकार करता है वह कणाद है। ये कपोतवृत्तिका आश्रयण कर गिरे हुए अन्न के कणों को खाकर जीवन यापन करते थे। इसलिए उनका नाम कणाद पड़ा ष्ष्तस्य कपोतीं वृत्तिमनुतिष्ठतः रथ्यानिपतितांस्तुण्डुल कणानादाय प्रत्यहं कृताहार निमित्ता संज्ञाश् भगवन शंकर ने उलूक रूप में इस शास्त्र का उपदेश दिया इसलिए इसे औलूक्य कहा जाता है। . मुनये कणादाय स्वयमीश्वरः उलूकधारी प्रत्यक्षी भूय .श्धर्मविशेषप्रसूताद् द्रव्यगुणकर्म सामान्य.विशेषसमवायानां पदार्थानां साधम्र्यस्यवैधम्र्याम्यां तावज्ञानान्श्रिेयसम्श् पदार्थषट्कम् उपदिदेश । इन षट् भाव पदार्थों के साधम्र्य तथा वैधम्र्य के उत्पन्न तत्वज्ञान से निःश्रेयस की प्राप्ति होती है। वैशेषिक सूत्र दस खण्डों में विभक्त है। वैशेषिक सूत्रों की संख्या 370 है तथा प्रत्येक अध्याय में 2 आहनिक है। इनके सूत्रों का आरम्भ श्अथातो धर्म जिज्ञासाश् से होता है। श्यतोऽभुदयानिः श्रेयस् सिद्धिः स धर्मः ;वै01ध्1ध्2द्ध जिससे अभ्युदया और निःश्रेयस् की सिद्धि होती हैए वह धर्म है। वै0 दर्शन में दो ही प्रमाणों को स्वीकार किया गया है। कणाद का परमाणुवाद और विशेष पदार्थ सर्वथा अन्य दर्शनों की उपेक्षा वैशिष्ट्य आधान करता है। परमाणु अविभाज्य सर्वतः सूक्ष्म अतीन्द्रिय पदार्थ है यह नित्य है इससे सृष्टि का आरम्भ होता है।