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भारतीय मुद्रा के ...

भारतीय मुद्रा के आदि स्वरूप में कलात्मक पक्ष (अद्यतन से चौथी शताब्दी तक)

Author Name : डॉ. नम्रता र्स्वणकार, ज्योति शर्मा

शोध आलेख सार

कला मानव की सहज अभिव्यक्ति है। यह मानव मस्तिष्क की वह क्रिया है जहां वह अपने अनुभवों को किन्हीं निश्चित कला तत्व एवं सौन्दर्य सिद्धान्तों के आधार पर अभिव्यक्त करता है। प्रागैतिहासिक काल से मानव ने अपने आसपास के वातावरण से प्रभावित होकर अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए पत्थरों व तूलिका द्वारा रेखाओं एवं आकृतियों को शैलाश्रय व चट्टानों पर जब उकेरना प्रारम्भ किया तो वह कला का प्रारम्भिक काल माना गया। चित्रलिपि का प्राचीनतम व प्रारम्भिक स्त्रोत मुद्रा (मुहरांे) से प्राप्त हुआ। जिसका कला के अर्न्तगत पौराणिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, धार्मिक दृष्टिकोण से महŸव है। प्राचीन मुद्रा के कलात्मक स्वरूप पुरातत्ववेताओं को ऐतिहासिक प्रमाणित साक्ष्यों के साथ-साथ विभिन्न राजवंशो की वंशावली, संस्कृति, सामाजिक व राजनैतिक व्यवस्था की जानकारी देती हैं। मुद्रा की उŸपति, निर्माण विधि, विषय आदि इतिहास के ज्ञान का ठोस साधन है। आधुनिक समय में भारत का प्राचीन साहित्य क्रमबद्ध रुप से उपलब्ध नही था इसलिए इतिहासकारों ने इतिहास निर्माण में पुरातŸव सामग्री का सहारा लिया। पुरातŸव सामग्री में मुद्रा का विशेष महŸव है। मुद्रा के अध्ययन से इन पर अंकित चित्र, लिपि व प्रतीकों के माध्यम से प्राचीन लोकतन्त्र शैली की जानकारी प्राप्त होती हैै।1 अनेक राजवंशों की वंशावली केवल मुद्रा के माध्यम से ही प्राप्त हुई है इस प्रकार मुद्रा प्राचीन भारतीय इतिहास तथा भारतीय कला संस्कृति आदि को जानने व समझने में अतुल्य है।