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ISSN: 2455-6211

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महात्मा गांधी का ...

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महात्मा गांधी का ...

महात्मा गांधी का धार्मिक चिंतन

Author Name : जितेंद्र प्रजापति, प्रो0 गोपाल प्रसाद

DOI: https://doi.org/10.56025/IJARESM.2024.121024618

 

मनुष्य चाहे जिस धर्म का मानने वाला हो, उस धर्म के ऊपरी रूपमात्र का विचार करता है और धर्म के वास्तविक अर्थ से अनभिज्ञ होता है। धर्म मानव की खोज है, उपज नहीं। खोज सदैव अज्ञात तत्व की होती है। इस दृष्टि से धर्म अविनाशी तत्व हैं। भौतिकवाद की दृष्टि से धर्म प्राकृतिक विधान, आध्यात्मवाद की दृष्टि से निज विवेक का प्रकाश तथा श्रद्धापथ की दृष्टि से ईश्वर का मंगलमय विधान है। धर्म धारण किया जाता है अर्थात् धर्म की धर्मो के साथ एकता होती है। धर्म के धारण करने से मानव को भयरहित चिरशान्ति मिलती है। धर्म मानव को रागरहित करने में समर्थ है। रागरहित होते ही साधक स्वतः योगवृत्त, तत्ववृत्त, प्रेमवृत्त एवं कृतकृत्य हो जाता हैं। इस कारण धर्म सर्वतोमुखी विकास की भूमि है। रागरहित भूमि में ही योग रूपी वृक्ष लगता है और योग रूपी वृक्ष पर ही तत्वज्ञान रूपी फल लगता है, जो प्रेम रूपी रस से परिपूर्ण होता हैं। सामाजिक तथा नैतिक आचरण में व्यक्त आध्यात्मिक जीवन का ही नाम धर्म है, मानव जीवन का यही आश्रम और आधार है।