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राष्ट्रकूट स्था...

राष्ट्रकूट स्थापत्य शैली : कैलाशनाथ मंदिर के विशेष सन्दर्भ में

Author Name : डॉ0 प्रवीण कुमार तिवारी

 

DOI: https://doi.org/10.56025/IJARESM.2023.1202241962

 

आठवी शताब्दी के मध्य में बादामी के चालुक्यों के पतन के पश्चात् राष्ट्रकूट एक प्रबल शक्ति के रुप में दक्षिण भारत में अवतरित होते है। राष्ट्रकूटों के द्वारा न केवल दक्षिण भारत वरन् उत्तर भारत की राजनीतिक गतिविधियों को प्रभावित करने का कार्य किया। आठवीं शताब्दी से लेकर दसवीं शताब्दी तक राष्ट्रकूटों का निरन्तर उत्कर्ष होता रहा। न केवल राजनीतिक क्षेत्र में वरन् कला के क्षेत्र में भी राष्ट्रकूटों के द्वारा अनेक नवीन आयाम स्थापित किए गए। राष्ट्रकूटों के अधीन एलोरा, एलीफेण्टा, जोगेश्वरी तथा मण्डपेश्वर में राष्ट्रकूट कालीन स्थापत्य एवं मूर्ति शिल्प के स्मारक प्राप्त होते है। राष्ट्रकूटां के अधीन धार्मिक सहिष्णुता की प्रवृत्ति देखने को मिलती है। अधिकांश राष्ट्रकूट शासक शैव धर्म में विश्वास रखते थे, परन्तु जैन एवं बौद्ध धर्म से जुड़े हुए बहुत से गुफाओं, विहारों एवं चैत्यों का निर्माण हुआ। जैन धर्म में विश्वास रखने वाले व्यवसायिक वर्ग के द्वारा इस मत का पोषण करने एवं उनकी परम्पराओ को बनाए रखने के लिए अनेक स्मारकों का निर्माण करवाया गया।