International Journal of All Research Education & Scientific Methods

An ISO Certified Peer-Reviewed Journal

ISSN: 2455-6211

Latest News

Visitor Counter
5182873634

स्त्री-विमर्श और ...

You Are Here :
> > > >
स्त्री-विमर्श और ...

स्त्री-विमर्श और अनामिका

Author Name : श्रीमती आशा राठौर, डॉ० संजीव विश्वकर्मा, डॉ० बहादुर सिंह परमार

शोध सार

 

स्त्री-मुक्ति, स्त्री-दृष्टि, स्त्री-चेतना आदि स्त्री-अस्मिता से जुड़े हुए बीज शब्द है। इन सब पर तर्कपूर्ण, संयत चिंतन प्रक्रिया ही स्त्री विमर्श है। स्त्री-मुक्ति का अर्थ अपने परिवार से, समाज से, अपने संबंधों से मुक्ति नहीं है।वास्तव  में एक स्त्री इन सबसे मुक्त हो ही नहीं सकती। स्त्री-मुक्ति तो वास्तव में परिवार, समाज, संबंधों के नाम पर होने वाले शोषण, उत्पीड़न, दमन से मुक्ति की मांग  है। इस प्रजातांत्रिक समाज की वह भी एक प्रमुख घटक है। वह तो सिर्फ इस प्रजातंत्र में अपना भी सम्माननीय स्थान चाहती है। अपने साथ वह समाज के अन्य शोषित, उत्पीड़ित वर्ग की मुक्ति चाहती है। पितृसत्तात्मक समाज द्वारा बार-बार छले जाने पर भी उनके साथ रहने के लिए विवश है। अनामिका के शब्दों में -"यह अभद्र और असंयत पुरुष भी तो आखिर हमारी ही संताने हैं।" स्त्री-मुक्ति एक सांझा प्रयास हैं। यह किसी वर्ग, धर्म, नस्ल या संप्रदाय विशेष का आंदोलन नहीं है, वरन् समाज के हर संवेदनशील मनुष्य द्वारा मानवता की रक्षा की मांग है। आज पुरुषों को बदलने की जरूरत है।अनामिका जी कहती है आज ध्रुवस्वामिनी की तरह स्वाभिमानी स्त्री रामगुप्त नहीं वरन् चंद्रगुप्त को नायक के रूप में चाहती है। नारी जीवन की विभिन्न रूप अनामिका जी के साहित्य में उद्घाटित हुए हैं। अनामिका जी लिखती हैं- "स्त्री-विमर्श पुरुषों के खिलाफ नहीं, उस पितृ सत्तात्मकता के खिलाफ है जो पुरुषों को भेड़िया और स्त्रियों को भेड़ की स्थिति में स्थापित करता हुआ मानवीय गरिमा से दोनों को ही गिराता है। इसलिए दुश्मन तो दोनों का ही है।"