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असुर जनजाति के आर...

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असुर जनजाति के आर...

असुर जनजाति के आर्थिक स्वरूप का विश्लेषणात्मक समाजशास्त्रीय अध्ययन ( बिशुनपुर प्रखण्ड के संदर्भ मे )

Author Name : मधु कुमारी

सरांस

असुर जनजाति आदिम जनजाति है। आदिकाल से असुर लौह कर्मी रहे हैं। सरकार द्वारा जंगलों के संबंध में लगाये गये प्रतिबंध एवं जंगलों के सुरक्षित किये जाने से इन्हें कठिनाई हुई है। आधुनिक पद्धति के समाने इनकी पुरानी पद्धति टिक नहीं पाई जिसे इन्हें अपने व्यवसाय में परिवर्तन करना पड़ा। परिवर्तन के युग ने असुरों के अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव डाला है। असुर स्थायी कृषि को मुख्यतया अपना चुकी है। असुरो की आर्थिक स्थिति ठिक नहीं इसलिए कृषि से समय मिलने पर ये लोग मजदूरी भी करते है। असुर लोग लोहा बाजार से खरीदने लगे है। उसका निर्माण करना बन्द कर चुके है। चुंकि वर्तमान में भी असुर वन के करीब है और अपनी परम्परा को जीवित रखने का प्रयत्न कर रहे है। मार्च माह से जून तक असुर जंगलों में बरहा, खरगोश, गिलहरी, साही जैसे पशुओं का शिकार करते है। शिकार प्राय पुरूष द्वारा सामुहिक रूप में होता है। असुरो में कारीगरी भी देखने को मिलता है। ये लकड़ी के उपकरण बनाकर बाजार में बेचते है। वर्तमान मे असुर जनजाति कृषि के साथ साथ मजदूरी के कार्य मे भी संलग्न है । उनके मकान मिट्टी के है घर मे न पंख न पलंग की व्यवस्था थी । उनके पास बर्तनों की बि कमी है । सरकारी योजना का पूर्ण लाभ इन आसरो को नहीं मिल पा रहा है । 

मुख्य शब्द -असुर जनजाति, आर्थिक स्वरूप, लोहकर्मी, कृषि