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छत्तीसगढ में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का विष्लेषणात्मक अध्ययन
Author Name : नमिता शर्मा
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्थित शुरुआत भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् 1950 में की गई। गरीबों को सस्ते मूल्य पर खाद्यान्नों को वितरित करने की प्रणाली है, जिससे उन्हें खाद्यन्नों की बढ़ती हुई क्रय कीमतों के बोझ से बचाया जा सकें। इसके अंतर्गत केन्द्र सरकार पांच वस्तुओं चावल, गेहूं, चीनी, आयातित खाद्य तेल तथा मिट्टी का तेल, को क्रय करने तथा राज्यों तथा संघ राज्यों को उनकी आपूर्ति करने का दायित्व वहन करती है। कुछ राज्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली के द्वारा वितरण के लिए कुछ और वस्तुएं भी प्रदान करते हैं। खाद्य सुरक्षा का अथ है सभी लोगों को सभी समयों पर पर्याप्त मात्रा में खाद्यन्न उपलब्ध कराना ताकि वे सक्रिय व स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकें। इसके लिये यह आवष्यक है कि न केवल समग्र स्तर पर खाद्यन्नों की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध हो बल्कि व्यक्तियों/परिवारों के पास उपयुक्त क्रयषक्ति भी हो ताकि वे आवष्यकता-अनुसार खाद्यन्न खरीद सकें। जहां तक पर्याप्त मात्रा का संबंध है, इसके दो पहलू 1. मात्रात्मक पहलू (मांग के अनुरूप खाद्यन्न पूर्ति) 2. गुणात्मक पहलू (पोषण संबंधी आवष्यकता की पूर्ति) क्रय षक्ति के सरकार रोजगार सृजन के कार्यक्रम संचालित करती है। खाद्य सुरक्षा के मात्रात्मक एवं गुणात्मक पहलुओं के समाधान के लिए सरकार ने तीन खाद्य-आधारित सुरक्षा जाल अपनाएं है 1. सार्वजनिक वितरण प्रणाली 2. समेकित बाल विकास सेवाएं जिसे आई सी डी एस कहा जाता है। 3. दोपहर भोजन कार्यक्रम ।