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भारत के स्वतंत्रता सगा्रम में सविनय अवज्ञा आंदोलन का महत्व व इसका प्रभाव
Author Name : रीना
शोध सार
सविनय अवज्ञा आंदोलन- महात्मा गांधी द्वारा प्रतिपादित सत्याग्रह का सिद्धान्त सत्य अथवा आत्मिक शक्ति पर बल देता है। इसकी सबसे सुन्दर अभिव्यक्ति सविनज्ञ अवज्ञा के रूप में हुई। असहयोग से तात्पर्य आवश्यक रूप से सविनय अवज्ञा से नहीं है। किन्तु सविनय अवज्ञा निश्चित रूप से वर्तमान संस्थाओं के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए गांधी द्वारा प्रयुक्त पद्धति की आधारशिला है। इसका अर्थ मात्र असहयोग ही नहीं वरन् राज्य अथवा समाज के कानूनों का विरोध है यही सविनय अवज्ञा आन्दोलन का सर्वाधिक क्रियाशील रूप है। दोनों का सार एक ही है अर्थात बुराई का अहिंसात्मक तरीकों से प्रतिरोध करना। राजनीति में हम इसका अर्थ अन्यायपूर्ण कानूनों से उत्पन्न दोष व बुराइयों का विरोध करने से ले सकते है। परन्तु इस शब्द का भी प्रयोग उस अन्तिम दशा में करना चाहिए जबकि वर्तमान कानूनों को मानना एक प्रकार से पाप बन जाये। हमें सविनय अवज्ञा को कानूनों के अपराधपूर्ण उल्लघन से नहीं लेना चाहिए। अपराधी कानून का उल्लंघन दण्ड से बचने के लिए करता है। जबकि सत्याग्रही समाज के हित के लिए सरकार से असहयोग करता है। सविनय अवज्ञा करने वाला सरकार के कानूनों के प्रति आदर व श्रद्धा रखता है पर जब वे कानून समाज के लिए अहितकर बन जाते है तो सत्याग्रही उनका अनादर व अवज्ञा करता है। कानूनों की अवज्ञा करते समय सत्याग्रही दण्ड से भयभीत नहीं होता।
मुख्य शब्द- साइमन कमीशन, नव चेतना का संचार, स्त्रियों का सहयोग, संवैधानिक सुधारों को प्रोत्साहन।