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भारतीय वाङ्मय मे...

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भारतीय वाङ्मय मे...

भारतीय वाङ्मय में लोकधर्मिता का अर्थ एवं स्वरूपः कविताओं के विशेष संदर्भ में

Author Name : सुमन शेखावत

सारांश

लोकधर्मिता क्या है ? यह एक ऐसा प्रचलित शब्द है जिसका अर्थ है सामान्य। यह कुलीनता से नितान्त विरोधी है। लोक में हम उन वर्गों को सम्मिलित करते हैं जो अपनी श्रमजीविता के बल पर जीवित रहते हैं। इस प्रकार हम इसमें निम्न मध्यम वर्ग, निम्न वर्ग, दलित, आदिवासी व अन्य सामान्य जन जो दिन-प्रतिदिन अपनी समस्याओं का डटकर मुकाबला करते हैं और कठिन परिश्रम से अपनी आजीविका को साधते हैं, अभावों मंे जीते हैं। लोकधर्मी वे हैं जो लोक-गीतों, नृत्य, लोक कलाओं, लोक उत्सवों, आदि में लीन रहते हुए अपने श्रम के लिए खटता है, अभावों में जीता है, शोषण उत्पीड़न से मुक्त होने के लिए संघर्षरत रहता है। यह लोकधर्मिता शहर और गांवों मंे नहीं बांटी जा सकती, यह पूरे भारत या विश्व में सर्वत्र व्याप्त है।