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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एवं उदारवादियों की राष्ट्रीय आंदोलन में भूमिका
Author Name : डॉ. सुनीता मीणा
शोध सारांश
सन् 1885 मे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म हुआ। कांग्रेस की स्थापना एक सेवानिवृत्त अंग्रेज ए ओ ह्यूम अधिकारी ने कि थी। बम्बई की गोकुलदास तेजपाल संस्कृत पाठशाला में 28 दिसम्बर 1885 को कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन हुआ था। इस अधिवेशन की अध्यक्षता उमेशचंद्र बैनर्जी ने की। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जन्म (उदय) पर पट्टभिसीता रमैय्या ने लिखा हैं “यह एक रहस्य ही हैं कि किसके मन में पहले अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का विचार आया।“ व्योमेश चन्द्र बनर्जी ने यह तथ्य सामने रखा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का विचार वायसराय लार्ड डफरिन के मस्तिष्क की उपज था। डफरिन ने ए. ओ. ह्यूम को इसकी स्थापना हेतु प्रेरित किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना करने वाले संस्थापक 1. ए ओ ह्यूम 2. दादा भाई नौरोजी एवं 3. दिनशा वाचा थे। कांग्रेस का उद्देश्य बिना किसी भेदभाव के भारतवासियों का प्रतिनिधित्व करना था। इसका राष्ट्रीय स्वरूप इसी से परिलक्षित होता है कि इसके प्रथम अध्यक्ष व्योमेशचन्द्र बनर्जी भारतीय ईसाई थे। दूसरे दादाभाई नौरोजी पारसी थे, तीसरे बदरुद्दीन तैयबजी मुसलमान थे, जॉर्ज यूल चौथे अध्यक्ष अंग्रेज थे। 1885 मे कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन मे केवल 72 प्रतिनिधि सम्मिलित हुए थे, लेकिन समय और परिस्थितियों के अनुकूल होने तथा भारतीय जनता के बढ़ते हुए राष्ट्रीय उत्साह के कारण राष्ट्रीय कांग्रेस की संख्या मे तेजी से और निरन्तर वृद्धि होती गई। दूसरे, तीसरे और चौथे अधिवेशन मे क्रमशः 436, 607, तथा 1248 प्रतिनिधियों ने भाग लिया और शनैः शनैः इसने अखिल भारतीय संस्था का रूप धारण कर लिया। इस लेख मे हम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदय के कारण और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उद्देश्य जानेंगे।
मुख्य बिन्दु:- कांग्रेस के उद्देश्य एवं कार्यक्रम , भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में उदारवादियों का योगदान , ब्रिटिश साम्राज्यवाद की आर्थिक नीतियों की आलोचना , व्यवस्थापिका संबंधी योगदान तथा संवैधानिक सुधार , सामान्य प्रशासकीय सुधारों हेतु उदारवादियों के प्रयास , प्रारंभिक राष्ट्रवादियों के कार्यों का मूल्यांकन , जन साधारण की भूमिका एवं निष्कर्ष ।