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जाॅन डीवी की प्रयोजनवादी शैक्षिक विचारधारा के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विलेषणात्मक अध्ययन
Author Name : विजय लक्ष्मी शर्मा
सार संक्षेप
शैशवावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक हम सभी कुछ न कुछ सीखते रहते है। वास्तव में शिक्षा वह है जिसके द्वारा बालक की समस्त शारीरिक, मानसिक,सामाजिक तथा आध्यात्मिक शक्तियों का विकास होता है। ज्ञान तथा सत्य की खोज करना तथा उसके वास्तविक स्वरूप को समझाने की कला को ही दर्शन कहा जाता है।.दर्शन और शिक्षा में अटूट सम्बंध है ये एक-दूसरे पर आश्रित है। दर्शन इस ब्रम्हाण्ड और उसमें मानवजीवन की व्याख्या करता है। जेम्स के वाद अमेरिका के विचारक जाॅन डीवी ने इस विचारधारा को आगे बढ़ाया डिवी ने व्यक्ति की इच्छा शक्ति की सामाजिक परिप्रेक्ष्य में स्वीकार किया उसके अनुसार मानव प्रगति का आधार समाजिक बुद्वि ही होती है। प्रयोजनवाद को अच्छी तरह से समझने के लिये तत्वमीमांसा, ज्ञान एवे तर्क मीमांसा और मूल्य एवं आचार मीमांसा इसमे आवश्यक है।जाॅन डीवी के अनुसार शिक्षा के उदद्ेश्य नही होता न शिक्षा एक सापेक्ष विचार है। उदद्ेश्य केवल व्याक्तियों के होते है। तथा व्यक्तियों के उदद्ेश्य वहुत अधिक भिन्न होते है। ये विभिन्न बालकों के लिये विभिन्न होते ही ज्यो ज्यो बालक विकसित होते जाते है। त्योें त्यों उद्देश्य बदलते जाते है। प्रस्तुत शोध कार्य में वर्तमान परिप्रेक्ष्य से तापत्पर्य आज 21 वीं शताब्दी में जाॅन डीवी के प्रयोजनवादी शैक्षिक विचारांे की प्रासंगिकता से। इस विचार के साथ शोधकर्ता ने निष्कर्ष निकाला है कि जाॅन डीवी के शैक्षिक विचार समकालीन भारतीय शिक्षा प्रणाली में लागू होते है
म्ुाख्य बिन्दुः- तत्वमीमांसा, सामाजिक परिप्रेक्ष्य, आध्यात्मिक शक्तियाॅं