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स्त्री का अस्तित्व: प्रभा खेतान के उपन्यास
Author Name : पल्लवी पाण्डेय
सारांश आदि काल से पुरुष लेखक और महिला लेखिकाओं द्वारा हिन्दी गद्य, पद्य, निबन्ध इत्यादि माध्यम से नारी जीवन, नारी चेतना, नारी शिक्षा, नारी शोषण, नारी जागरण, नारी आत्मनिर्भर आदि विषयों पर अपनी लेखनी द्वारा एक स्त्री के सम्बन्ध में समाज के सामने चित्रण प्रस्तुत किया जा रहा है। उपन्यास की महत्ता साहित्य में प्राचीनकाल से विद्यमान है। महिला उपन्यासकारों ने यथार्थ भोगे हुए अनुभवों को अपनी लेखनी में उतारा है। बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में उपन्यासों में अनेक महिला लेखिकाओं ने स्त्री की मनः स्थिति को स्वाभाविकता से व्यक्त कर स्त्री के जीवन का प्रभावशाली और सजीव चित्रण प्रस्तुत किया है। इसी कड़ी में नारी मुक्ति आंदोलन व स्त्री-चिंतन की प्रसिद्ध साहित्यकार व उपन्यासकार डॉ0 प्रभा खेतान का नाम आता है। प्रस्तुत शोध पत्र में प्रभा को एक नारी चिन्तक मानते हुए इनके उपन्यासों में एक स्त्री के अस्तित्व के बारे में इनके विचारों को गहराई से समझने का प्रयास किया गया है। प्रभा जी अपने लेखन के द्वारा स्त्री को सामाजिक व आर्थिक पहलुओं पर गहराई से चिंतन करते हुए नारी को एक नया आसमान प्रदान कर ऊँची उड़ान दी हैं। इन्होंने वास्तव में जो भोगा और समाज में जो देखा उसका यथार्थ चित्रण समाज के सामने प्रस्तुत कर एक स्त्री को अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु समाज में फैली कुरीतियाँ व खोखली परम्पराओं के विरुद्ध खड़े होकर लड़ने का संबल प्रदान किया है।