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महिला के प्रति अपराध एवं कानून व्यवस्था
Author Name : डॉ. सुगल राम रैगर
शोध सारांश
“स्वयं, किसी व्यक्ति, समूह या समुदाय के विरुद्ध उन्हें किसी प्रकार के मानसिक या शारीरिक चोट पहुंचाने के लिए जान-बूझकर किये गए शक्ति के प्रयोग” को हिंसा कहते हैं। “जान बूझ कर किया गया कोई भी ऐसा काम जो समाज विरोधी हो या किसी भी प्रकार से समाज द्वारा निर्धारित आचरण का उल्लंघन अथवा जिसके लिए दोषी व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी) के अंतर्गत कानून द्वारा निर्धारित दंड दिया जाता हो” ऐसे काम अपराध कहलाते हैं। उपयुर्क्त परिभाषा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि हिंसा और अपराध दोनों एक दूसरे से सीधा संबंध है। ऐसी कोई भी क्रिया-कलाप जिससे किसी व्यक्ति विशेष या समूह, समुदाय की भावनाएं और स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े और व्यवस्थाओं में आवांछित प्रभाव पड़े, वे सभी हिंसा और अपराध के श्रेणी में रखे जायेंगे। अपराध जंगल में लगने वाले आग की तरह है, जिसे समय पर न रोका जाए तो, आने वाले समय में यह विध्वंसकारी रूप धारण कर लेती है और यह समूचे मानव जाति के ऊपर एक प्रश्नचिन्ह खड़ा कर सकती है । हाल ही में राष्ट्रीय महिला आयोग (छब्ॅद्ध ने सूचित किया कि वर्ष 2018 के प्रारंभिक 05 महीनों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की शिकायतों में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 36 की वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन जनवरी 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 के तहत एक सांविधिक निकाय के रूप में किया गया था। इसका उद्देश्य महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में समानता और समान भागीदारी हासिल करने में सक्षम बनाने की दिशा में प्रयास करना है।